Wednesday, June 3, 2009

माहौल.....

माहौल इतना व्यस्त है,
जिधर देखो हर कोई त्रस्त है,
संवरे तो ज़िन्दगी,
बिगडे तो याद आती खुदा की बंदगी,
इन्सान अपने में खोया है इतना,
कि भगवान् भी याद नही आता है,
कमज़ोर हो चुकी है नज़र इतनी,
कि अपना भी पराया नज़र आता है,

न रस्म है न रिवाज़ है....

न रस्म है न रिवाज़ है,
ये तो प्यार की आवाज़ है,
न ही बड़ा बोल है,
न ही शरबत का घोल है,
फिर भी तुझमे मुझमे एक अजीब सी मिठास है,
शब्द और नही मेरे पास,
श्रुति तो एक संज्ञा है,
ये तुम्हारी तारीफ़ में,
मेरे प्यार भरे अल्फाज़ है.

ऐ खुदा

ग़म नही इस बात का,
कि मुझे मंज़िल न मिली,
पर खुशी है इस बात की,
कि ऐ खुदा तू हर पल मेरे साथ रहा.

Meri Apni Kahee

परिंदे है परिंदों से क्या शिकायत कीजिये,
वो तो अरमान लिए घूमते है,
उन्हें उड़ने का मौका तो दीजिये।