मेरी अपनी कही
Tuesday, December 29, 2009
किस्मत
मेरी किस्मत में जन्नत न थी,
पर ख्वाहिश भी किसे थी,
जिसे मैंने चाहा था,
वो ही मुझे न मिली|
बाग़ में जो फूल थे,
वो मुझे नापसंद थे,
मैंने जिस कली को सीचा था,
वो ही कली न खिली|
मेरी ख़ता|||
मेरी ख़ता बस इतनी रही,
सुबह को मैंने शाम कहा,
और तेरी ख़ता ये थी कि,
तूने मेरे प्यार आम कहा|
शहर भर में खबर थी,
चर्चे थे मेरे प्यार के,
तेरी राह देखते देखते,
मैं ताउम्र बदनाम रहा|
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